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धर्म के आधार पर विभाजनकारी बयानबाजी देश की संवैधानिक एकता के लिए बड़ी चुनौती: सुप्रीम कोर्ट जस्टिस

12-29 IDOPRESS

अहमदाबाद:

सुप्रीम कोर्ट के न्‍यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा ने कहा कि धर्म,जाति और नस्ल के आधार पर विभाजनकारी बयानबाजी का बढ़ता इस्तेमाल संवैधानिक आदर्श,बंधुत्व के साथ-साथ देश में एकता की भावना के लिए बड़ी चुनौती है. जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा गुजरात के खेड़ा जिले के वडताल में वकीलों के संगठन अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में ‘बंधुत्व: संविधान की भावना' विषय पर सभा को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने चेतावनी दी कि राजनेताओं द्वारा वोट के लिए पहचान की राजनीति का इस्तेमाल सामाजिक विभाजन को और गहरा कर सकता है.

जस्टिस मिश्रा ने कहा कि विभाजनकारी विचारधाराएं,बढ़ती आर्थिक असमानता और सामाजिक अन्याय भाईचारे की भावना के लिए बड़े खतरे हैं तथा भाईचारे को बनाए रखना आम नागरिकों,संस्थाओं व नेताओं की ‘साझा जिम्मेदारी' है.

भाईचारे के बिना अन्य आदर्श कमजोर हो जाते हैं : जस्टिस मिश्रा

उन्होंने कहा,“ स्वतंत्रता,समानता और न्याय के आदर्शों में भाईचारा हमारे लोकतांत्रिक समाज के ताने-बाने को जोड़ने वाला एकता का सूत्र है और भाईचारे के बिना,अन्य आदर्श कमजोर हो जाते हैं.”

जस्टिस मिश्रा ने कहा,“भाईचारे के लिए एक बड़ी चुनौती धर्म,जाति और नस्ल के आधार पर विभाजनकारी बयानबाजी का बढ़ता उपयोग है. जब व्यक्ति या समूह ऐसी चीजों को बढ़ावा देते हैं,जो एक समुदाय को दूसरे के खिलाफ खड़ा करते हैं,तो यह संविधान द्वारा परिकल्पित एकता की भावना को कमजोर करता है.”

विभाजनकारी बयानबाजी अविश्वास पैदा करती है :जस्टिस मिश्रा

उन्होंने कहा कि पहचान की राजनीति,कभी-कभी हाशिए पर खड़े समूहों को सशक्त बनाती है लेकिन जब यह भलाई की कीमत पर केवल संकीर्ण समूह हितों पर ध्यान केंद्रित करती है तो यह हानिकारक हो सकता है,जिसके परिणामस्वरूप अक्सर ‘बहिष्कार,भेदभाव और संघर्ष' होता है.

जस्टिस मिश्रा ने कहा,“विभाजनकारी बयानबाजी समुदायों के बीच अविश्वास पैदा करती है,जिससे रूढ़िवादिता और गलतफहमियां फैलती हैं. ये तनाव सामाजिक अशांति में बदल सकते हैं. इसके अलावा,जब राजनीतिक नेता चुनावी लाभ के लिए सामाजिक पहचान का उपयोग करते हैं,तो यह इन विभाजनों को और गहरा करता है,जिससे सामूहिक भावना का निर्माण करना कठिन हो जाता है.”

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