अपने 'दोस्त' मस्क और विवेक रामास्वामी को ट्रंप ने सौंपी है क्या बड़ी जिम्मेदारी, जानिए क्या है DOGE
11-13 HaiPress
डोनाल्ड ट्रंप और एलन मस्क.
नई दिल्ली:
Donald Trump DOGE: डोनाल्ड ट्रंप ने ऐतिहासिक जीत के बाद चुनाव के दौरान दिए 'सेव अमेरिका' के नारे में जमीन पर उतारने की तैयारी शुरू कर दी है. लगातार वह बाइडेन सरकार (Biden Government) पर फिजूलखर्ची के आरोप लगाते चले आ रहे थे. ट्रंप ने बाइडेन सरकार की कई नीतियों की आलोचना भी की थी. साथ ही अवैध इमीग्रेशन के विरोध में सख्त कदम उठाने का भी लोगों से वादा किया है. अब सरकार ने बनने वाली और डोनाल्ड ट्रंप सरकार गठन की प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं. उन्होंने सबसे पहले यह बता दिया है कि उनकी सरकार के काम करने का थीम क्या होगा.
DOGE की सोच पर ट्रंप ने शुरू किया काम
ट्रंप ने जो सोचा था जिसकी घोषणा चुनावी सभा में की थी उस पर काम शुरू भी कर दिया है. चुनावी सभा में ट्रंप ने डोजे (DOGE) नाम के एक मंत्रालय को बनाने की घोषणा की थी. इस मंत्रालय का काम सरकार की फिजूलखर्ची को कम करना था. साथ ही सरकार की एफिशिएंसी को बढ़ाना था. जहां पर भी ज्यादा मैनपावर है वहां पर उसे कम करना या शिफ्ट करना आदि सुझाव देना था.
कैसा होगा विभाग DOGE
अब ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद इस विभाग का काम भी निर्धारित कर दिया है. ट्रंप ने इस विभाग को सलाहकार की भूमिका में ला दिया है. यह विभाग अब ट्रंप को और सरकार के सभी मंत्रालय तथा उनके कार्यालयों को सलाह देगा जिससे काम में गति आए. ट्रंप का मानना है कि बिजनेसमैन एलन मस्क और विवेक रामास्वामी नई सोच के साथ सरकारी कामकाज में रिफॉर्म पर काम करेंगे. ट्रंप ने इस विभाग का नाम डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (Department of Government Efficiency DOGE) रखा है.
कैसे काम करेगा DOGE
अब सबके मन में यह सवाल है कि यह काम कैसे करेगा. जो खबरें निकलकर सामने आ रही हैं उससे यह साफ हो रहा है कि यह सरकारी विभाग नहीं होगा. यह सरकार को सलाह देना वाली एक संस्था होगी. यह बाहरी संस्था होगी. बताया जा रहा है कि यह संस्था सरकार को खर्चों को कम करने,पैसों की बरबादी रोकने,नोकरशाही के रोल को कम करने और सरकारी एजेंसियों को रिस्ट्रक्चर करना ताकि बेहतर काम हो सके. ट्रंप पहले ही बता चुके हैं कि इस संस्था का काम नौकरशाही के दखल को कम करना,नियमन को कम करना,सरकारी पैसे की बरबादी को कम करना और सरकारी तंत्र में रीस्ट्रक्चर करना होगा. ट्रंप का मानना है कि यह सब कदम उनके 'सेव अमेरिका' मुहिम का हिस्सा हैं.
मस्क और रामास्वामी को क्यों चुना
ट्रंप ने बताया है कि इस प्रोजेक्ट को एलन मस्क जो कि टेस्ला और स्पेस एक्स के सीईओ हैं,और विवेक रामास्वामी जो एक फार्मा कंपनी के मालिक हैं,मिलकर चलाएंगे. ये दोनों ही पहले से ही सरकार के फिजूलखर्चे के मुखर विरोधी रहे हैं. सरकारी दखलंदाजी और अत्यधिक नियमन का विरोध ये दोनों ही बिजनेसमैन पहले कई बार कर चुके हैं. ट्रंप दोनों को दो शानदार अमेरिकन (two wonderful Americans) कहते रहे हैं. ट्रंप का मानना है कि ये दोनों मिलकर फेडरल सरकार के कामकाज में उद्यमिता दृष्टिकोण लेकर आएंगे.
किस विभाग के साथ मिलकर करेगा काम
अभी तक की बात से यह स्पष्ट हो रहा है कि यह विभाग वित्तीय प्रबंधन पर भी काम करेगा. उम्मीद की जा रही है कि यह ओएमबी (ऑफिस ऑफ मैनेजमेंट एंड बजट) के साथ मिलकर काम करेगा. इस विभाग का काम अमेरिका में राष्ट्रपति की वित्तीय नीति की सोच और प्रशासनिक रिफॉर्म पर काम करना होता है. ट्रंप ने कहा है कि यह काम प्रशासन में ऊपर से नीचे तक बदलाव की कहानी लिखेगा.
मस्क और रामास्वामी का क्या था विरोध
गौरतलब है कि एलन मस्क ने इलेक्ट्रिक व्हिकल की इंडस्ट्री में काफी बदलाव किए हैं. साथ ही स्पेस की दुनिया में भी मस्क ने कई साहसिक प्रयास किए हैं. उनके अलग हटकर सोचने के तरीके से उम्मदी की जा सकती है कि सरकार के कामकाज करने के तरीके में भी आमूलचूल परिवर्तन आएगा. रामास्वामी के बारे में भी कहा जाता है कि वो भी निजी क्षेत्र में सरकारी तंत्र के दखल के खिलाफ हैं. लालफीताशाही का विरोध करते रहे हैं. साथ ही नई संभावनाओं पर काम करते रहे हैं.
DOGE के काम करने का तरीका
डोजे के बारे में कहा जा रहा है कि यह काम कैसे करेगा. कहा जा रहा है कि यह फेडरल एडवाइजरी कमेटी एक्ट (FACA) के तहत काम करेगा. यह ऐक्ट सरकार को बाहर से सलाह देने वाली एजेंसीज पर लागू होता है. ऐक्ट के तहत कमेटी का काम पारदर्शिता से होना चाहिए,आम लोगों के प्रति जवाबदेह होगी और किसी भी प्रकार के हितों के टकराव का कोई काम नहीं करेगी. इसी के साथ ऐसा भी लग रहा है कि एलन मस्क और विवेक रामास्वामी अपने अपने काम को करते रहेंगे और दोनों में किसी के पास को सरकारी पद नहीं होगा. इससे साफ है कि दोनों पर किसी भी प्रकार से सरकारी कानूनी बाध्यता नहीं होगी.
क्या कारगर होगा DOGE
इसी के साथ सवाल यह भी उठ सकता है कि जब यह सरकारी नहीं होगी तब इसका कितना असर होगा. यह कितना बदलाव लाने में कामयाब होगी. क्योंकि इनकी सलाह बाध्यकारी नहीं होगी. कहीं इनके काम को सरकारी काम में दखल के रूप में तो नहीं देखा जाएगा.